Mutual Funds : म्यूचुअल फंड्स के हर एक स्कीम दो तरह के प्लांस के साथ उपलब्ध होते हैं। पहला है रेगुलर प्लान तथा दूसरा है डायरेक्ट प्लान। दोनों प्लांस के अपने-अपने फीचर्स होते हैं जिनके बारे में म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले हर एक निवेशक को जरूर जानकारी होनी चाहिए।
Mutual Funds : म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले हर एक निवेशक को इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि हर एक म्यूचुअल फंड स्कीम दो तरह के प्लांस के साथ उपलब्ध होते हैं। एक है रेगुलर प्लान जिसे रेगुलर म्यूचुअल फंड भी कहते हैं तथा दूसरा है डायरेक्ट प्लान जिसे डायरेक्ट म्यूचुअल फंड कहते हैं।
दोनों ही प्लांस में ग्रोथ तथा इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विड्रॉल जैसे दो विकल्प होते हैं। यहां निवेशकों को ध्यान देकर अपनी जरूरतों के हिसाब से सही प्लान तथा विकल्प को चुनना चाहिए। रेगुलर तथा डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स में काफी अंतर होता है तथा उनकी अपनी-अपनी विशेषताएं भी होती हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में-
क्या होते हैं रेगुलर तथा डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स?
रेगुलर म्यूचुअल फंड्स के तहत निवेशकों के पास वैसे म्यूचुअल फंड्स के प्लांस उपलब्ध होते हैं जिन्हें वे किसी म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से खरीदते हैं। इन प्लांस के अंतर्गत निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय किसी म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर या एजेंट के माध्यम से निवेश करने का निर्णय लेते हैं जो एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के साथ पंजीकृत हों।
वहीं, डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स की बात करें तो ये उन म्यूचुअल फंड्स को कहते हैं जिन्हें निवेशक किसी म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर की मदद लिए बिना सीधा म्यूचुअल फंड हाउस से खरीद सकते हैं। निवेशक चाहे तो डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स को सेबी रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स से भी खरीद सकते हैं।
दोनों में क्या है अंतर?
अगर डायरेक्ट तथा रेगुलर म्यूचुअल फंड्स में अंतर की बात करें तो इन दोनों में काफ़ी अंतर होता है। रेगुलर म्यूचुअल फंड्स के नेट एसेट वैल्यू डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स की तुलना में कम होते हैं।
रेगुलर म्यूचुअल फंड्स के एक्सपेंस रेशियो डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले अधिक होते हैं क्योंकि उनमें कमीशन तथा ब्रोकरेज भी शामिल होते हैं। एक्सपेंस रेशियो उस एक्सपेंस को कहते हैं जिसे म्यूचुअल फंड हाउसेज फंड को एक्टिवली मैनेज करने के लिए उठते हैं और इन्हें म्यूचुअल फंड के नेट एसेट वैल्यू पर चार्ज किया जाता है।
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स में डिस्ट्रीब्यूटर के कमीशन के नहीं होने की वजह से इनका एक्सपेंस रेशियो कम होता है जिस कारण से इन म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने वाले निवेशकों को ज्यादा रिटर्न मिलता है।
वहीं, रेगुलर म्यूचुअल फंड्स में डिस्ट्रीब्यूटर का कमीशन शामिल होता है जिस वजह से इनका एक्सपेंस रेशियो डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले अधिक होता है जिस वजह से निवेशकों को इनमें निवेश करके कम रिटर्न ही मिल पाता है।
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स में फाइनेंशियल एडवाइजर की कोई भूमिका नहीं होती जिस वजह से निवेशक खुद ही यह तय करते हैं कि उन्हें कहां निवेश करना है। वहीं, रेगुलर म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने पर निवेशकों को फाइनेंशियल एडवाइजर के मुताबिक ही निवेश करना होता है।
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स में काफ़ी जोखिम भी होता है क्योंकि निवेशकों को निवेश करने से पहले काफी अधिक रिसर्च करना पड़ता है तथा उन्हीं रिसर्च के आधार पर निवेश करना होता है। वहीं, रेगुलर म्यूचुअल फंड्स में रिस्क काफी कम होता है क्योंकि इनमें निवेश करने से पहले फाइनेंशियल एडवाइजर के द्वारा रिसर्च करके निवेश किया जाता है और इसी हिसाब से पोर्टफोलियो को भी डाइवर्सिफाई किया जाता है।
उम्मीद है म्यूचुअल फंड से जुड़ी यह एक और जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी और इससे भविष्य में आप एक समझदार तथा जानकार निवेशक बन पाएंगे और म्यूचुअल फंड में लंबी अवधि के लिए एक बेहतर म्यूचुअल फंड चुनकर उसमें बेहतर तरीके से निवेश कर पाएंगे।
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